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Answered
Review
Question 1 of 27
1. Question
4 points
विकल्पात्मक प्रश्न (Multiple choice questions):
1. इस लोक में सभी परस्पर आचार्यत्व करते है –
Question 2 of 27
2. Question
4 points
2. जीव नाम की वस्तु को कहते है –
Question 3 of 27
3. Question
4 points
3. गुण को कहते है –
Question 4 of 27
4. Question
4 points
4. समयसार एवं उसकी टीका की रचना किसलिए हुई –
Question 5 of 27
5. Question
4 points
5. गाथा 7-12 एवं टीका के आधार पर व्यवहार नय / शुद्ध के सन्दर्भ में इनमें से क्या सही है –
Question 6 of 27
6. Question
4 points
6. गाथा 17-18 एवं टीका के आधार पर बतायें – अज्ञानी जीव अज्ञानी रहता है, क्योंकि –
Question 7 of 27
7. Question
1 points
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें(Fill in the blanks)
1. यह मोह आदि अन्तरंग परिणाम रूप कर्म एवं शरीरादिक बाह्य वस्तु रूप नोकर्म _____________ पुद्गल परिणाम है ।
Question 8 of 27
8. Question
2 points
2. ______________ निज आत्मतत्त्व को देखनेवाली ___________ मूर्ति सदा ही प्रकाशित रहें, जयवंत रहें.
Question 9 of 27
9. Question
2 points
3. “____________ स्वरूप भगवान आत्मा ___________ को सदा स्वयं अनुभव में आ ही रहा है” ।
Question 10 of 27
10. Question
3 points
4. यदि मैं भगवान आत्मा को दिखा दूँ, तो तुम स्वयं के अनुभव प्रत्यक्ष से _______ प्रमाण करना, और यदि कहीं स्खलित हो जाऊं, तो _______ ग्रहण करने में _________ नहीं रहना चाहिए.
Question 11 of 27
11. Question
2 points
5. ज्ञेयाकार होने से उस ‘भाव’ के _________ प्रसिद्ध है, तथापि उसके ज्ञेयकृत ________ नहीं है.
Question 12 of 27
12. Question
1 points
सही या गलत बताएं:
1. प्रत्येक श्रुतकेवली आत्मज्ञानी होने के साथ साथ द्वादशांग के पाठी भी होते हैं.
Question 13 of 27
13. Question
1 points
2. ज्ञेयों के भेद से ज्ञान में भेद मालुम होना संकल्प है और द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म आदि पुद्गलद्रव्यों में अपनापन स्थापित करना विकल्प है ।
Question 14 of 27
14. Question
1 points
3. इन्धन और अग्नि के दृष्टान्त द्वारा आचार्यदेव अप्रतिबुद्ध से प्रतिबुद्ध बनने की विधि बता रहे हैं.
Question 15 of 27
15. Question
1 points
4. वास्तव शुद्धनय स्वरूप आत्मा की अनुभूति ही ज्ञान की अनुभूति है ।
Question 16 of 27
16. Question
1 points
5. निश्चय व्यवहार का प्रतिपादक है ।
Question 17 of 27
17. Question
1 points
6. आत्मा ज्ञान के साथ तादात्म्यस्वरूप है, अतः वह ज्ञान उसकी उपासना निरंतर करता ही है.
Question 18 of 27
18. Question
1 points
7. किसी भी प्रकार महाकष्ट से अथवा मरकर भी निजात्मतत्त्व का कौतूहली होना चाहिए.
Question 19 of 27
19. Question
1 points
8. सिद्ध भगवान मेरे आत्मा की साध्यदशा के स्थान पर हैं.
Question 20 of 27
20. Question
1 points
9. स्वतः अथवा परोपदेश से, जैसे भी हो; जिसका मूल भेदविज्ञान है, ऐसी अनुभूति उत्पन्न होगी तभी यह आत्मा अप्रतिबुद्ध होगा.
Question 21 of 27
21. Question
1 points
10. मेरे निज वैभव का जन्म लोक की समस्त वस्तुओं के प्रकाशक ‘स्यात्’ पद की मुद्रावाले शब्दब्रह्म की उपासनामात्र से हुआ है.